कहानियां अपने युग और परिवेश की पहचान होती हैं। ऐसी कहानियां जो आपको कुछ सोचने को मजबूर करें, जो आपकी अंतरात्मा को झकझोर दें, जो आपको अपने वातावरण के रंग से सराबोर कर दें, ऐसी कहानियां किसे अच्छी नहीं लगती? ये हमारी भावनाओं और दैनिक जीवन का सच्चा इतिहास होती हैं। ऐसा इतिहास जिसमें केवल पात्र और परिचय बदल जाते हैं।यह कहानी चाहे लखनपुर की हो या लंदन की या नासिक की या फिर न्यूयार्क की। वही कहानी सर्वप्रिय है जो आपके दिल को छू जाती है । ऐसी कहानी स्तंभ के लिये हिन्दी english के सभी पाठकों, लेखकों और पढने लिखने के शौकीन लोगों से मौलिक कहानियां आमंत्रित हैं।
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भाव जब कविता बने, कुछ झूठ आ मिले, रिश्ता जोडा, मूल बदल गया, कविता का रुप वो न रहा, कुछ था जो उभर नही पाया, या कवि ने उभरने ना दिया, सब ने दर्द छुपा रखे हैं, अपनी अपनी कविता में, तो क्यों न कहूं, पिटारी भावों की, सपनो की, इसी कविता को। जब भी खुली, किसी और के हाथ, उसने अपना ही चेहरा देखा, किसी और की कविता में, सब को अपनी सी लगी, सब का दर्द एक,असंतोष, कभी अपनों से कभी गैरों से, वो मिली मुझे, बोली मेरा रुप लौटा दो मुझे, झुठलाओ नही मुझे, निकलने दो आंसुओं कि तरह, प्राकृतिक और अनछुई, मैं बदल जाउंगी, तो मुझे दर्पण कौन कहेगा? मेरा दर्प कहाँ रहेगा? कविता ने दर्पण बन जाना चाहा, मैंने बन जाने दिया, सब को अपनी सी लगी,प्राकृतिक और अनछुई।
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