Wednesday, June 25, 2008
चालाकी((नौ दो ग्यारह)) और पश्चाताप
इस संसार में कुछ व्यक्तियों को अपनी बुद्धि पर इतना गर्व होता है कि वो सामने वाले को कुछ समझते ही नहीं हैं ऐसे ही एक व्यक्ति संतोष जी थे जिनके गुण और उनके नाम में कोई मिलान नहीं था जो यदि किसी दुकान पर चले जाते, और दुकानदार ने किसी भी समान का कितना भी उचित दाम क्यों न बोला हो, लेकिन वो बिना मोलभाव के समान ही नहीं ले सकते थे ऐसे ही बिजनेस के संबंध में दिल्ली जाना हुआवहाँ पर दिल्ली रेलवे स्टेशन से टेम्पो पकड़कर नॉएडा किसी कंपनी में काम के वास्ते गए तथा वहाँ से काम करके फिर दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वापस लोटने के लिए टेम्पो स्टैंड से टेम्पो पकड़ने गए आदत से मजबूर होने के कारण सोचा कि चलो इधर से दिल्ली तक बिना मीटर चलवाये ही टेम्पो से चलते हैं और मुझे एक तरफ का किराया पता ही है, उस किराये से बीस पच्चीस कम में किराया तय करके ही किसी टेम्पो से चलते हैं टेम्पो स्टैंड पर टेम्पो वालों से बात करना शुरू किया लेकिन कोई भी डेढ़ सौ से नीचे तैयार ही नहीं हो रहा था जो कि आये हुए किराये से करीब बाईस रूपये ज्यादा था अपने को मज़बूरी में पाकर एक टेम्पो वाले को लेकर मीटर रीडिंग के अनुसार किराए की बात करके टेम्पो पर चढे और दिल्ली के लिए चल दिए वह शायद यह निश्चय करके इनको अपने टेम्पो पर बैठाया की देखो अपनी चालाकी का परिणाम, आप समझते हो कि मैं ही चालाक हूँ अरे आप अपने कारोबार, काम काज में चतुर होंगे यह हम लोगो का कारोबार है जिसमे प्रतिदिन कितने ही व्यक्तियों को टेम्पो पर चढाकर इधर से उधर घुमाकर और उलूल-जुलूल का किराया लेकर उन लोगो को प्रसन्नता से विदा कर दिया जाता है जैसे ही टेम्पो थोड़ी दूर आगे बढ़ी एक पेट्रोल पम्प पर टेम्पो खड़ा करके टेम्पो में तेल लेने के बाद ड्राईवर ने संतोष जी से बड़े ही सम्मानजन लहजे में बोला साहब जरा सौ रूपए दीजिए पेट्रोल का दाम दे दूँ यह पैसा आप किराये में से काट लीजियेगा सवारी से सौ रूपए लेकर तेल का दाम पेट्रोल पम्प पर चुकता करने के बाद टेम्पो को हवा से बातें कराते हुए अपने सवारी को अपने धंधे की परेशानियों, अपने धंधे में लगे हुए व्यक्तियों तथा टेम्पो पर बैठने वाली सवारियों के व्यवहारगत अच्छाइयों तथा बुराइओं के बारे में बात करते हुए अपने सवारी को बातों में ऐसा उलझाया कि वह दिल्ली पहुचते-पहुचते यह भूल गए कि हमें टेम्पो वाले को किराया देते समय उसमे से सौ रूपये काटना है अंत में दिल्ली स्टेशन पर पहुच कर टेम्पो को ऐसे स्थान पर रोका कि जहाँ से बस इत्यादि इतनी तेजी से गुजर रही थी कि कोई भी व्यक्ति उस स्थान से अपना काम करके जल्दी से हट जाना चाहे यही बात संतोष जी के साथ हुई, उन्होने मीटर देखा, मीटर के अनुसार किराया एक सौ उन्न्तीस बनता था टेम्पो वाले को एक सौ तीस रुपये दिए टेम्पो वाले ने भी ख़ुशी-ख़ुशी उनसे पैसा लिया और नमस्कार करके टेम्पो लेकर चलता बना संतोष जी जैसे ही सड़क पार कर स्टेशन कि तरफ बढे, उनको एकाएक याद आया, अरे टेम्पो वाले को एक सौ तेल भरवाते समय दिया था उसको तो मैं किराये में काटना ही भूल गया पीछे मुड़ कर देखा तो टेम्पो वाला तो वहाँ से नदारत हो गया था अब सौ रूपये गवाने पर अफ़सोस के सिवाये कुछ भी न था संतोष जी मन ही मन सोच रहे थे कि देखो बातें कितने ऊंचे आदर्शों की कर रहा था और काम कितना घटिया कर गया कितनी सफाई से एक सौ रूपये का चूना लगा कर नौ दो ग्यारह हो गया [:)]
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